कौन हो तुम, कहाँ हो तुम
मैं जानूँ ना...
मैं जानूँ ना...
नहीं हो तुम, ना आओगे कभी
ये मानूँ ना...
प्यार है नाम तुम्हारा
बस इतना ही तुम्हें जाना
और है यही सुना...
जोड़ कर और घटा कर
एक एक खट्टा-मीठा-कड़वा एहसास,
आखिर एक सपना सा है बुना...
बसी तो है एक तस्वीर मेरे मन में
पर कैसे दिखते हो तुम ये जानूँ ना...
रूठ कर लौट ना जाना जानेजाना
अब अगर मैं पहचानूँ ना…
सुंदर प्रेममयी रचना , आभार
ReplyDeletelajwab
ReplyDeleteअरे वाह, यह नया ब्लॉग तो मुझसे छुटा हुआ था। अच्छा लगा इसपर विचारों के एक नये कलेवर से परिचय पाकर। बधाई।
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कब तक ढ़ोना है मम्मी, यह बस्ते का भार?
आओ लल्लू, आओ पलल्लू, सुनलो नई कहानी।
शायद आपने ब्लॉग के लिए ज़रूरी चीजें अभी तक नहीं देखीं। यहाँ आपके काम की बहुत सारी चीजें हैं। एक बार समय निकाल कर अवश्य देखें।
ReplyDeleteजल्द ही जान जाओगे।
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