Monday 30 January 2012

सुनो, सपनों के राजकुमार...



सुनो, सपनों के राजकुमार
तुम्हारे सिवा किसी से ना चाहा प्यार
चुप सह लिया इसीलिये मन पर हर वार
और मांगा तुम्हें, चाहा तुम्हें
पहले से ज़्यादा हर बार

अब सोचती हूँ,
क्या उठा पाओगे तुम
मेरी अपेक्षाओं का भार
जब मिलोगे आखिरकार
मुझसे पहली पहली बार

मैं तो रूप बदलती हूँ
तुम साथ दे सकोगे?
तल्लीनता से बहती नदी
या मोहक फ़ूलों भरी डगर
बन सकोगे सागर प्यास बुझाने वाले
या दूजे ही पल प्यासे इक भ्रमर?


हो जाऊँ कभी जो आत्मलीन
हो जाये मेरा दर्शन गहन
जो ना समझो, उपहास ना करना
कभी बन जाये बहुत हठी मन,
सच लगे जो दिखलाए दरपन
समझाने का प्रयास ना करना

माहिर हूँ अकेले चलने में
ठोकर खाकर फ़िर सम्भलने में
खुद रचा है मैंने ये संसार
है ये मेरी रियासत, मेरा महल
इसीलिये खीझ उठूँगी मैं
जब जब तुम दोगे दखल

लेकिन बखूबी आता है तुम्हें
प्यार करना, खयाल करना
हाथ थामकर आगे चलना
इस आराम, इस सुख की खातिर
चाहूँगी मैं कभी कभी, पीछे चलना
सब मेरा हो, मैं तुम्हारी हो जाऊँ
फ़िक्र करना तुम, मैं कहीं खो ना जाउँ



माना, ज़रूरतों से पहले
बदलती हैं मेरी ख्वाहिशें
पर मेरे सपनों में
तुम भी रंग रूप बदलते हो
हर तरह से चाहती हूँ मैं तुम्हें
हर रूप में तुम मुझ पर मरते हो

तुम्हारी प्रेरणा तुम्हारी हमसफ़र
करती हूँ परवाह भी हर पहर
लेकिन साथ तुम्हारे होते भी 
रह ना जाऊँ अकेली ये सोचकर
कभी कभी मैं जाती हूँ डर

खैर, तुम हो सपनों के राजकुमार,
सपने होते हैं हसीं
अगर सच में मिलें हम,
क्या बरकरार रहेगा यकीं?





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