सुनो, बहुत प्यार करती हूँ मैं तुमसे, मुग्ध सी हूँ, तुम्हारी सारी खूबियों पर, हैरान सी कि ये सब मेरा है और कितना प्रेम है तुम्हें भी, मुझसे। मुझे लगने लगा है, मोहब्बत ही दुनिया हो जैसे।
लेकिन नहीं, मैं तुम्हें और कुछ “सुनाना” नहीं चाहती, नहीं चाहती कि तुम जानो मुझमें शहद सी मिठास के साथ साथ इतना ज़हर भी है। नहीं चाहती कि तुम ये कहने लगो मैं सदा सुनाती रहने वाली प्रेमिका/ पत्नी हूँ। नहीं चाहती, फ़िर तुम भी उन फ़िज़ूल चुट्कुलों को सच समझने लगो जो तुम्हारे दोस्त तुम्हें sms पर भेजते हैं, तुम उन्हें नज़रअन्दाज़ करना बन्द कर दो और तुम सीख लो, मेरी बातों को नज़रअन्दाज़ करना।
सबसे बड़ी वजह तो ये है, कि मैं नहीं चाहती मेरी बातों से तुम्हारा “मूड” खराब हो, क्योंकि जब ऐसा होता है ना, तुम्हारी नज़रें इतनी मोहक नहीं रहती, मुझसे सहन नहीं होता तुम्हारा वो रूप, इसलिये मैं चुप रहती हूँ, मुस्कुराकर जवाब देती हूँ और खो देती हूँ अपने आपको तुम्हारी मुस्कुराहट में।
लेकिन मैं क्या करूँ, कुछ बातें मैं समझ नहीं पाती और कई बातें मैं तुम्हें समझाना चाहती हूँ। काश तुम खुद ही पढ़ लो ये सब मेरी आँखों में। इतना प्यार करती हूँ अपनी इस ख्वाबों सी जिन्दगी से, इतना डरती हूँ इसे खोने से कि मैंने आँख मूंदना भी सीख लिया है कुछ बातों पर।
बहुत मिलते हैं हमारे विचार, हम सोलमेट्स जो हैं। और क्या तुम जानते हो, मैं टकराने ही नहीं देती हमारे विचार, ज़रूरी तो नहीं तुम मेरी तरह सोचो, मेरी ही नज़र से देखो। ज़रूरी तो है तुम्हारा मुस्कुराते रहना। हालाँकि सोचने लग जाती हूँ, और अच्छे से समझे होते तुम मुझे तो मेरा प्यार शायद और सच्चा होता। पर यकीन करो मेरा, मुझे सच्चा प्रेम है तुम से अभी भी।
तुम काम करते हो, अपने लिये, मेरे लिये, हमारे घर के लिये। तुम्हें ये अहसास है, तुम्हारा काम उपयोगी है देश के लिये, तुम गर्व से भरे हुए और थके हुए घर आते हो। मैं भी काम करती हूँ ‘हमारे लिये’, मैं वो सब करने की कोशिश करती हूँ जो किसी काम का नहीं ज़्यादातर लोगों की नज़र में, लेकिन जो मैं ना करूँ तो तुम्हारा कोई काम आसानी से ना हो। ‘मैं’ ‘हमारा घर’ सम्भालती हूँ, रोज़ एक सा काम करती हूँ जिसकी कहीं कोई नुमाइश नहीं कर सकती क्योंकि वो तो ‘मेरा’ काम है। मैं ज़्यादा नहीं थकती, मुझे ज़्यादा दिन बीमार होने की छूट नहीं। और तुम मीठी बातें भी तो ऐसी करते हो, सारे दिन की थकान उनमें घुल जाती है। पर तुम्हारी थकान ऐसे नहीं दूर होती, तुम्हारा मूड अच्छा रखने की खातिर मैं हमारा घर सँवरा रखती हूँ, अच्छी चाय, अच्छा खाना बनाती हूँ, जिसे हम साथ बैठकर खाते हैं, आखिर, मीठी बातों से सिर्फ़ मेरा ही पेट भर सकता है।
मैं भी कोई ‘उपयोगी’ काम करना चाहती थी, देश के लिये, पैसा ही नहीं लोकप्रियता कमाना चाहती थी, लेकिन मैं सोचती थी कि कैसे “मेरा काम” और “हमारा घर” “मैं अकेले” सम्भाल पाऊँगी। मैंने कोशिश की थी, लेकिन कुछ बातें तब भी समझ ही नहीं सकी मैं। क्यों तुम्हें बिखरा हुआ घर दिखायी नहीं देता और जैसे ही दिखायी देता है तुम कहते हो, ‘कम से कम’ घर तो ठीक रखा करो, कोई मेहमान अगर घर आ जाये… मैं मन में सोचती हूँ ये तो “हमारा घर” है ना, कुछ चीज़ें तुम भी करीने से रखो, कभी मैं भी वर्कलोड की बात कह सकूँ, कभी शाम की चाय, रात का खाना मुझे तैयार मिल जाये और ये कोई अनोखी सी बात ना हो। मेरी तरह तुम भी ये सब यूँ ही करो, मेरे प्यार में। खैर, तुमने बस एक बार कहा कि मैं इतना काम करती हूँ कि तुम्हें भूल ही जाती हूँ, और मैं पिघल गयी। मेरी रचनात्मकता घर में बहने लगी, मैंने सोचा मैं हमारे घर को स्वर्ग बनाऊँगी, हमारे होने वाले बच्चों को अच्छे संस्कार देकर देश के भविष्य में योगदान दूँगी। लेकिन दिक्कत ये है कि मुझे याद है कि ये बच्चे तुम्हारे भी तो होंगे ना और दुखी हो बैठी हूँ कि तुम जो बाँट लेते मेरी ज़िम्मेदारी तो मैं भी सिर्फ़ हाउसवाइफ़ नहीं होती। मैं बहुत अनदेखा करती हूँ इन विचारों को, क्योंकि मैं बिना किसी शिकायत, बिना किसी शर्त ही तुमसे प्यार करना चाहती हूँ। ऐसा प्यार जिसकी लोग मिसालें दें, पर मैं क्या करूँ मैं नहीं समझ पाती अपने ही मन को, अपने ही प्यार को।
मुझे खुशी मिलती है तुम्हारे लिये ये सब करके, लेकिन मैं चाहती हूँ ये खुशी कभी कभी तुम्हें भी मिले। समझो तुम कभी मेरी जगह आकर मेरी ज़िन्दगी। पर तुम ये राज़ की बात जानते हो, मुझे समझना उतना ज़रूरी नहीं जितना मुझे प्यार करना, मेरा सम्मान करना, मुझे हँसाना और यूँ ही मेरे दीवाने बने रहकर, मुझे इस मोहपाश में बाँधे रखना। कभी कभी तुम भी मेरा मूड खराब कर देते हो यूँ ही, पर मैं तुमसे बदला लेकर अपना ही नुकसान नहीं कर सकती, हमारा घर सदा प्रेम से भरा रहना चाहिये ना।
ये सब मैं तुम्हें नहीं सुनाऊँगी। दुनियाभर की औरतों तुम सुन लो, इस दुनिया को बेहतर करने में मैं किसी की कोई मदद नहीं कर सकती। मैं कोई कड़वी बात नहीं कहूँगी अपने या तुम्हारे हक़ के लिये भी। मैने स्वंय को ही प्रकृति मान लिया है इसलिये इतना तो मैं सह सकती हूँ। मैंने पैसा नहीं कमाया, नाम नहीं कमाया, बस प्यार कमाया है, जिसे मैं खो नहीं सकती।
मैं बस इतना करूँगी कि हमारे बेटे को एक बेहतर प्रेमी बनाऊँगी, उसे त्याग़ की सिर्फ़ कदर करना ही नहीं खुद त्याग करना भी सिखाऊँगी… उसे सौन्दर्य, प्रेम, समर्पण पर केवल कविताँए करना ही नहीं, इन सबकी मिसाल खुद बनना भी सिखाऊँगी… ताकि उसे कोई, ज़्यादा सच्चा प्यार कर सके।
और अगर सब बेटे ऐसे होंगे, तो मुझे मेरी बेटी को कुछ नया सिखाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। उसे बस मैं बताऊँगी कि प्यार से भागना और प्यार को खोने से डरना, दोनों ही ठीक नहीं। प्यार को रास्ते की, अपने विकास की, रुकावट ना बनने दो, विश्वास करो, तुम इतनी मज़बूत हो कि प्यार को साथ लेकर चल सको।
मैं सपने देखने लगी हूँ, कैसा हो, किसी दिन बेटी अपनी पसंद का टीवी शो देख रही हो और बेटा रसोई मे मेरी मदद कर रहा हो। कभी बेटा अपने स्कूल का प्रोजेक्ट बनाने में जुटा हो और बेटी उसकी बिखराई चीज़ें समेट रही हो। तब किसी एक को त्याग की मूरत बनने की ज़रूरत ही कहाँ होगी, तैयार होंगे ये बच्चे, अपने लिये और अपने प्यार के लिये, अपने घर के लिये और अपने देश के लिये एक साथ काम करने के लिये। इनके पास वक़्त ही नहीं होगा मेरी तरह डरते रहने का। पर मुझे डर है, तब तक बाहर की दुनिया जाने कितनी बदलेगी।